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MP News : गोटमार मेला, प्रेम कथा की खूनी परंपरा में 500 घायल, 1 गंभीर नागपुर रेफर, प्रशासन की सख्ती बेअसर

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जिला प्रशासन की तमाम कोशिशों और धारा 144 लागू करने के बावजूद पत्थरबाजी पर रोक नहीं लग सकी।

MP News : पांढुर्णा। मध्यप्रदेश के पांढुर्णा में हर साल की तरह इस बार भी गोटमार मेला हिंसा और रक्तपात का पर्याय बना रहा। जाम नदी के किनारे आयोजित इस परंपरागत मेले में पांढुर्णा और सावरगांव के लोगों ने एक-दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाए, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 500 लोग घायल हो गए। एक व्यक्ति की हालत गंभीर होने के कारण उसे नागपुर रेफर किया गया है। जिला प्रशासन की तमाम कोशिशों और धारा 144 लागू करने के बावजूद पत्थरबाजी पर रोक नहीं लग सकी।


प्रेम कथा से उपजी खूनी परंपरा-

गोटमार मेला एक ऐसी परंपरा है, जिसकी शुरुआत एक अधूरी प्रेम कहानी से हुई। किवदंती है कि पांढुर्णा के एक युवक और सावरगांव की एक युवती के प्रेम प्रसंग को रोकने के लिए सावरगांव के लोगों ने जाम नदी पर पत्थरबाजी शुरू की थी। जवाब में पांढुर्णा के लोगों ने भी पत्थर फेंके, जिसके बीच प्रेमी युगल की मौत हो गई। तभी से यह खूनी खेल हर साल ‘गोटमार मेले’ के रूप में मनाया जाता है, जिसे आधुनिक संदर्भ में ‘आनर किलिंग फेस्टिवल’ भी कहा जा सकता है।


प्रशासन की सख्ती, फिर भी नहीं रुकी हिंसा-

जिला प्रशासन ने इस हिंसक परंपरा को नियंत्रित करने के लिए व्यापक इंतजाम किए थे। कलेक्टर अजय देव शर्मा ने धारा 144 लागू की, 600 पुलिसकर्मी, 58 डॉक्टर और 200 मेडिकल स्टाफ तैनात किए गए। इसके अलावा, 6 अस्थायी स्वास्थ्य केंद्र बनाए गए और ड्रोन व सीसीटीवी से निगरानी की गई। बावजूद इसके, पांढुर्णा और सावरगांव के लोगों ने सुबह 10 बजे से दोपहर तक एक-दूसरे पर पत्थरों की बौछार की, जिससे सैकड़ों लोग घायल हो गए।


घायलों की स्थिति और मेडिकल व्यवस्था-

हादसे में घायल हुए लोगों का इलाज स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों में किया जा रहा है, जबकि एक गंभीर रूप से घायल व्यक्ति को बेहतर उपचार के लिए नागपुर रेफर किया गया। प्रशासन ने घायलों की संख्या के आधिकारिक आंकड़े जारी नहीं किए हैं, लेकिन सूत्रों के मुताबिक, करीब 500 लोग इस हिंसक परंपरा की भेंट चढ़े।


सामाजिक और नैतिक सवाल-

गोटमार मेला, जो आस्था और परंपरा के नाम पर आयोजित होता है, हर साल सैकड़ों लोगों की जान और स्वास्थ्य को जोखिम में डालता है। 1955 से 2023 तक इस मेले में 13 लोगों की मौत हो चुकी है, और कई लोग स्थायी रूप से अंग-भंग का शिकार हुए हैं। फिर भी, इस हिंसक परंपरा को रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जा सके हैं। यह मेला न केवल कानून-व्यवस्था के लिए चुनौती है, बल्कि मानवता और सामाजिक नैतिकता पर भी सवाल उठाता है।

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