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Mahakumbh 2025 : पूर्वोत्तर से 20 से अधिक संत महाकुंभ में पहली बार करेंगे अमृत स्नान, प्राग्ज्योतिष क्षेत्र शिविर में विशेष आयोजन

Mahakumbh 2025

जो एक नई दिशा को दर्शाता है और इस क्षेत्र के श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या को आकर्षित कर रहा है।

Mahakumbh 2025 : प्रयागराज। प्रयागराज महाकुंभ में इस बार एक ऐतिहासिक घटना हो रही है, जब पूर्वोत्तर भारत से 20 से अधिक संत महात्मा पहली बार अमृत स्नान करेंगे। इस आयोजन में शामिल संत मौनी अमावस्या पर अखाड़ों के साथ मिलकर इस धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा बनेंगे। महाकुंभ में पहली बार पूर्वोत्तर का शिविर स्थापित किया गया है, जो एक नई दिशा को दर्शाता है और इस क्षेत्र के श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या को आकर्षित कर रहा है।


Mahakumbh 2025 : पूर्वोत्तर के श्रद्धालुओं की उत्साही भागीदारी-
महाकुंभ के सेक्टर सात में "प्राग्ज्योतिष क्षेत्र" नाम से स्थापित शिविर में निर्मोही अनी अखाड़े के महामंडलेश्वर महंत केशव दास जी महाराज ने बताया कि "मौनी अमावस्या पर अखाड़ों के साथ 22 संत अमृत स्नान करेंगे, जिनमें से अधिकांश संत पहली बार यह पवित्र स्नान करेंगे।" उन्होंने यह भी कहा कि पहली बार प्रयागराज महाकुंभ में पूर्वोत्तर का शिविर होने से हजारों श्रद्धालु इस धार्मिक मेले का हिस्सा बनने के लिए पहुंच रहे हैं।


Mahakumbh 2025 : नामघर परंपरा और कामाख्या मंदिर की प्रतिकृति-
महंत केशव दास महाराज ने यह जानकारी दी कि इस शिविर में कामाख्या देवी मंदिर की प्रतिकृति स्थापित की गई है, और यहां भक्तों को कामाख्या जल और गंगा जल का मिश्रण दिया जा रहा है। यह पहली बार है कि महाकुंभ में नामघर की स्थापना की गई है, जो पूर्वोत्तर की प्राचीन वैष्णव परंपरा को दर्शाता है। इस परंपरा को श्रीमंत शंकरदेव महापुरुष द्वारा विकसित किया गया था, और अब यहां भागवत का अखंड पाठ होगा।


Mahakumbh 2025 : सांस्कृतिक प्रदर्शन और मनोरंजन-
इस शिविर में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाएगा। महंत केशव दास जी महाराज ने बताया कि यहां बैंबू डांस, अप्सरा नृत्य और राम विजय भावना जैसे पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत किए जाएंगे। इन सांस्कृतिक गतिविधियों को महाकुंभ में पहली बार पेश किया जा रहा है, जिससे यह आयोजन और भी विशेष बन गया है।


Mahakumbh 2025 : प्राग्ज्योतिष क्षेत्र नाम का महत्व-
महंत ने बताया कि "नॉर्थ ईस्ट" नाम अंग्रेजों द्वारा दिया गया था, जबकि इसका पुराना नाम "प्राग्ज्योतिषपुर" था, और इसी परंपरा को ध्यान में रखते हुए इस शिविर का नाम "प्राग्ज्योतिष क्षेत्र" रखा गया है। इस शिविर का आयोजन महाकुंभ में पूर्वोत्तर के श्रद्धालुओं और संतों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो इस क्षेत्र की संस्कृति, परंपरा और धार्मिक आस्था को और भी प्रबल बनाता है।

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