राष्ट्रपति लुकाशेंको ने 7वीं बार जीता चुनाव, विपक्ष ने बताया 'मजाक'

बेलारूस के राष्ट्रपति एलेक्ज़ेंडर लुकाशेंको ने एक बार फिर भारी मतों से जीत दर्ज करते हुए अपने 30 वर्षों के शासन को आगे बढ़ाया। केंद्रीय चुनाव आयोग के अनुसार, 70 वर्षीय लुकाशेंको ने लगभग 87% वोटों के साथ यह चुनाव जीता।
हालांकि, विपक्ष और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस चुनाव को एक ‘मजाक’ करार दिया है। रविवार को बेलारूस में आयोजित इस चुनाव में लुकाशेंको के प्रचार पोस्टरों पर लिखा था, "ज़रूरी!" और उनके समर्थकों को यह कहते दिखाया गया कि वे उन्हें फिर से सत्ता में देखना चाहते हैं।
लेकिन उनके विरोधी, जिनमें से कई जेल में बंद हैं या देश से निर्वासित हैं, इसे पूरी तरह से एक पूर्व-नियोजित प्रक्रिया मानते हैं।
चुनाव में विपक्ष की आवाज दबाई गई
2020 के चुनावों में व्यापक विरोध प्रदर्शनों के बाद, इस बार चुनाव के दौरान कोई स्वतंत्र पर्यवेक्षक मौजूद नहीं थे। विदेशों में रहने वाले लगभग 35 लाख बेलारूसी नागरिकों को भी वोट देने का अधिकार नहीं दिया गया। विपक्षी नेता स्वेतलाना तिखानोव्सकाया, जो 2020 में लुकाशेंको के खिलाफ खड़ी हुई थीं, ने इस बार बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन का आह्वान नहीं किया।
तिखानोव्सकाया ने कहा कि 2020 के दमन के बाद विरोध करने की कीमत बहुत ज्यादा हो गई है।
‘शांतिपूर्ण और सुरक्षित’ बेलारूस का दावा
लुकाशेंको ने अपने प्रचार में "शांति और सुरक्षा" का वादा करते हुए दावा किया कि उन्होंने बेलारूस को यूक्रेन जैसे युद्ध में फंसने से बचा लिया। उन्होंने रूस के साथ अपने गहरे संबंध बनाए रखते हुए अपनी सत्ता को मजबूत किया है।
2022 में, उन्होंने रूस को बेलारूस की जमीन का इस्तेमाल यूक्रेन पर हमले के लिए करने दिया और यहां तक कि रूस के कुछ सामरिक परमाणु हथियारों को भी अपने देश में जगह दी।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
यूरोपीय संसद और अमेरिकी विदेश विभाग ने इस चुनाव को 'धांधली' करार दिया है। अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा, "दमन ताकत का नहीं, बल्कि कमजोरी का संकेत है। विरोध को दबाने के अभूतपूर्व उपाय यह स्पष्ट करते हैं कि लुकाशेंको शासन अपने ही लोगों से डरता है।"
लुकाशेंको ने मतदान के बाद पत्रकारों से कहा कि उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि पश्चिम इस चुनाव को मान्यता देता है या नहीं। लेकिन आलोचकों का मानना है कि उनका शासन अब पूरी तरह से रूस के समर्थन पर निर्भर हो गया है, और उनकी सत्ता की पकड़ कमजोर होती जा रही है।