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Manmohan Singh: सरकारी नौकरी से प्रधानमंत्री तक का सफर, जानिए कैसा रहा मनमोहन सिंह का मुश्किल भरा जीवन यात्रा

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन पर अमेरिका और रूस ने शोक व्यक्त किया और उनकी स्मृति को सम्मानित किया। उनका योगदान भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने में महत्वपूर्ण था।

Manmohan Singh: नई दिल्ली: भारत के 14वें प्रधानमंत्री, डॉ. मनमोहन सिंह, जिनका नाम आज भी आर्थिक सुधारों के पितामह के रूप में लिया जाता है, ने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ राजनीति में कदम रखा और देश के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। 22 मई, 2004 को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले डॉ. सिंह ने 26 मई, 2014 तक दो कार्यकाल पूरे किए। वे कांग्रेस नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार के प्रमुख थे और कुल 3,656 दिनों तक प्रधानमंत्री के रूप में सेवा प्रदान की। अपने कार्यकाल में, डॉ. मनमोहन सिंह ने भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में कई अहम बदलाव किए और भारतीय इतिहास में तीसरे सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले प्रधानमंत्री बने। उनसे पहले सिर्फ जवाहरलाल नेहरू (6,130 दिन) और इंदिरा गांधी (5,829 दिन) ही इतने लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे थे।


Manmohan Singh: शिक्षा और प्रारंभिक करियर

26 सितंबर, 1932 को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गाह गांव में जन्मे डॉ. मनमोहन सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से अर्थशास्त्र में की और फिर ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की। उनकी सरकारी सेवा में लंबी और सफल यात्रा रही। 1971 में, जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं, डॉ. सिंह ने विदेश व्यापार मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में अपना करियर शुरू किया। इसके बाद, 1972 में, वे वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बने, जहां उन्होंने 1976 तक कार्य किया।


Manmohan Singh: सरकारी नौकरी से राजनीति में कदम

डॉ. सिंह ने 1991 में भारत के वित्त मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला, जब देश गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा था। उन्होंने विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए कई आर्थिक सुधारों की शुरुआत की, जिसमें रुपये का अवमूल्यन, करों में कमी और सरकारी उद्योगों का निजीकरण शामिल था। इसके परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण सुधार हुआ। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे और 1991 में राज्यसभा के सदस्य बने। हालांकि, 1999 के लोकसभा चुनाव में वे हार गए थे।


Manmohan Singh: प्रधानमंत्री पद तक का कठिन सफर

2004 के संसदीय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) को हराने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद से मना कर दिया। इसके बाद, डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया। 22 मई, 2004 को उन्होंने पदभार संभाला और 2014 तक देश की सेवा की। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद, उनके मुख्य लक्ष्यों में भारत के गरीबों की स्थिति में सुधार लाना, पाकिस्तान के साथ शांति स्थापित करना, और विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सामंजस्य कायम करना था।


Manmohan Singh: आर्थिक सुधार और विदेश नीति

सिंह ने भारत की तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए कई योजनाओं पर काम किया, लेकिन ईंधन की बढ़ती कीमतों और मुद्रास्फीति ने उनके लिए चुनौतियाँ खड़ी कर दीं। 2005 में, उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश के साथ एक ऐतिहासिक परमाणु सहयोग समझौता किया, जो भारत को परमाणु ऊर्जा प्रौद्योगिकी और ईंधन प्राप्त करने में मदद करता था। हालांकि, इस समझौते को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध हुआ, और 2008 में जब इस पर आगे बढ़ने का फैसला लिया गया, तो उनकी सरकार को संसद में विश्वास मत का सामना करना पड़ा।

 






 

Manmohan Singh: दूसरा कार्यकाल और चुनौतीपूर्ण दौर

2009 के चुनावों में कांग्रेस ने अपनी सीटों की संख्या में वृद्धि की, और डॉ. सिंह ने प्रधानमंत्री के रूप में दूसरी बार पदभार संभाला। हालांकि, इस कार्यकाल में भारत की आर्थिक वृद्धि में मंदी आई और कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों ने सरकार की छवि को प्रभावित किया। 2014 में, डॉ. सिंह ने घोषणा की कि वे तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने की कोशिश नहीं करेंगे। इसी वर्ष, 26 मई को नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, और डॉ. सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

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