नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिवार ने पीएम मोदी से की थी गोपनीय दस्तावेज़ों को सार्वजनिक करने की मांग, देखें उनेक भतीजे ने क्या कहा...

नई दिल्ली: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज 128वीं जयंती है, जिसे पूरे देश में 'पराक्रम दिवस' के रूप में मनाया जाता है। आजादी के महानायक नेताजी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपने विचारों और नारों से देशभक्ति की अद्भुत ऊर्जा का संचार किया। उनके प्रसिद्ध नारे "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा", "जय हिंद" और "दिल्ली चलो" ने लाखों भारतीयों को प्रेरित किया। इनमें से "जय हिंद" का नारा राष्ट्रीय नारा बनकर हर भारतीय के दिल में बस गया। नेताजी का यह योगदान हमारी आजादी की कहानी का एक अमूल्य हिस्सा है।
इसी कड़ी में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भतीजे चित्तप्रिय बोस ने एक अहम किस्सा साझा किया, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी पहली मुलाकात और नेताजी से जुड़े रहस्यमयी तथ्यों को उजागर करने की अपील की थी। चित्तप्रिय बोस ने बताया कि 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद, उनके बड़े भाई, दो चचेरे भाइयों और एक चाची के साथ उन्होंने कोलकाता के राजभवन में पीएम मोदी से मुलाकात की थी। इस मुलाकात का उद्देश्य नेताजी की 18 अगस्त 1945 के बाद की गुमशुदगी को लेकर जांच शुरू करने की मांग करना था।
चित्तप्रिय बोस ने बताया कि प्रधानमंत्री ने इस बात पर ध्यान दिया और कहा कि वह परिवार के अन्य सदस्यों से भी मिलना चाहेंगे। इसके लिए पीएम मोदी ने दिल्ली आने का न्योता देने की बात कही।
दिल्ली में पीएम मोदी से हुई बड़ी मुलाकात
हालांकि, पीएमओ से कोई निमंत्रण न मिलने पर, परिवार ने 50 सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल तैयार किया और 7, रेस कोर्स रोड (अब लोक कल्याण मार्ग) पर जाकर पीएम मोदी से मुलाकात की। उन्होंने प्रधानमंत्री से नेताजी से जुड़े गोपनीय दस्तावेज़ों को सार्वजनिक करने की मांग की। इस मुलाकात के बाद पीएम मोदी ने दस्तावेज़ों को सार्वजनिक करने की प्रक्रिया शुरू करने की आधिकारिक घोषणा की।
नेताजी की जयंती को राष्ट्रीय सम्मान
चित्तप्रिय बोस ने बताया कि नेताजी के साहस, बलिदान और राष्ट्र के प्रति समर्पण को सम्मानित करते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी जयंती को "पराक्रम दिवस" के रूप में मनाने का निर्णय लिया। यह नेताजी के अद्वितीय योगदान को सम्मानित करने और उनके प्रति राष्ट्र के आदर को व्यक्त करने का एक ऐतिहासिक कदम है। यह कदम नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन और योगदान को नई पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ है।