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ISRO-NASA का NISAR Satellite श्रीहरिकोटा से लांच,घने जंगल और अंधेरे में देखने की क्षमता, 97 मिनट में धरती का चक्कर पूरा करेगा,जानें इसकी खासियत

NISAR Satellite

NISAR Satellite: नई दिल्ली। इसरो ने दुनिया के सबसे महंगे सिविलयन अर्थ इमेजिंग सैटेलाइट को लॉन्च कर दिया है। यह नासा और इसरो का संयुक्त मिशन है। निसार पृथ्वी के निम्न कक्षा में चक्कर लगाएगा और 5 साल तक अंतरिक्ष में रहकर पृथ्वी की निगरानी करेगा।


इसे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से शाम 5:40 बजे GSLV-F16 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया गया। रॉकेट ने निसार को 747 किलोमीटर की ऊंचाई पर सूरज के साथ तालमेल वाली सन-सिंक्रोनस कक्षा में स्थापित किया। इसमें करीब 18 मिनट लगे।


निसार 747 Km की ऊंचाई पर पोलर ऑर्बिट में चक्कर लगाएगा। पोलर ऑर्बिट एक ऐसी कक्षा है जिसमें सैटेलाइट धरती के ध्रुवों के ऊपर से गुजरता है। सन-सिंक्रोनस ऑर्बिट पोलर ऑर्बिट का ही एक खास रूप है। यह पहली बार है जब जीएसएलवी रॉकेट से उपग्रह को इस ऑर्बिट में स्थापित किया गया। इस मिशन की अवधि 5 साल है।


NISAR Satellite: निसार क्या है


निसार एक पृथ्वी अवलोकन सैटेलाइट है, जिसका वजन 2,392 किलोग्राम है। यह पहला ऐसा सैटेलाइट है जो दो अलग-अलग फ्रीक्वेंसी, NASA के L-बैंड और ISRO के S-बैंड का इस्तेमाल करता है। ये दोहरी रडार प्रणाली इसे धरती की सतह पर होने वाले बदलावों को पहले से कहीं ज्यादा सटीकता के साथ देखने में मदद करेगी। NASA के मुताबिक, ये दोनों सिस्टम धरती की सतह की अलग-अलग खासियतों, जैसे नमी, सतह की बनावट और हलचल, को मापने में माहिर हैं।


इस सैटेलाइट की लागत 1.5 बिलियन डॉलर (लगभग 12,500 करोड़ रुपये) से ज्यादा है, जो इसे दुनिया के सबसे महंगे पृथ्वी अवलोकन सैटेलाइट्स में से एक बनाता है। निसार को बनाने में 10 साल का वक्त लगा। इसमें 12 मीटर का एक खास गोल्ड मेश एंटीना लगा है, जो निम्न पृथ्वी कक्षा (Low Earth Orbit) में सबसे बड़ा है। यह ISRO के I-3K सैटेलाइट बस से जुड़ा है, जिसमें कमांड, डेटा, प्रणोदन (Propulsion), और दिशा नियंत्रण के लिए सिस्टम और 4 किलोवाट सौर ऊर्जा की व्यवस्था है।


NISAR Satellite: निसार कैसे काम करेगा


लॉन्च होने के बाद निसार 747 किलोमीटर की ऊंचाई पर सूर्य-समकालिक कक्षा में स्थापित होगा, जिसका झुकाव 98.4 डिग्री होगा। लेकिन यह तुरंत तस्वीरें लेना शुरू नहीं करेगा। पहले 90 दिन यह सैटेलाइट कमीशनिंग या इन-ऑर्बिट चेकआउट (IOC) में बिताएगा, ताकि यह वैज्ञानिक कार्यों के लिए तैयार हो सके। निसार का सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) धरती की सतह पर रडार तरंगें भेजेगा और उनके वापस आने का समय व फेज में बदलाव को मापेगा।


यह 2 तरह के रडार का इस्तेमाल करेगा:


L-बैंड SAR (1.257 GHz): यह लंबी तरंगों वाला रडार है, जो घने जंगलों और मिट्टी के नीचे की हलचल को देख सकता है। यह जमीन पर छोटे-छोटे बदलावों को मापने में मदद करेगा।


S-बैंड SAR (3.2 GHz): यह छोटी तरंगों वाला रडार है, जो सतह की बारीकियों, जैसे फसलों और पानी की सतह, को कैप्चर करेगा।


निसार पहली बार SweepSAR तकनीक का इस्तेमाल करेगा, जो 242 किलोमीटर के दायरे में उच्च रिजॉल्यूशन डेटा देगा। यह हर 12 दिन में पूरी धरती को स्कैन करेगा, वो भी हर मौसम में, दिन-रात, बादलों या अंधेरे के बावजूद।


NISAR Satellite: क्यों खास है निसार मिशन


निसार मिशन भारत और अमेरिका के बीच अंतरिक्ष क्षेत्र में बढ़ती साझेदारी का प्रतीक है, जो धरती की निगरानी में क्रांति लाएगा। यह मिशन धरती के इकोसिस्टम, बर्फ की चादरों, वनस्पति, जंगल, भूजल, समुद्र स्तर में वृद्धि और प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी, और भूस्खलन का अध्ययन करेगा। इसकी दोहरी रडार प्रणाली और SweepSAR तकनीक इसे बादलों, धुएं, या घने जंगलों के बावजूद दिन-रात और हर मौसम में सटीक डेटा इकट्ठा करने में सक्षम बनाती है, जो इसे अन्य सैटेलाइट्स से अलग बनाता है। निसार का डेटा वैज्ञानिकों, किसानों, और आपदा प्रबंधन टीमों के लिए मुफ्त उपलब्ध होगा, विशेष रूप से आपदा जैसे हालात में कुछ ही घंटों में। यह डेटा आपदा प्रबंधन, कृषि, और जलवायु निगरानी में न केवल भारत और अमेरिका, बल्कि पूरी दुनिया के लिए उपयोगी साबित होगा।

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