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तेलंगाना सुरंग हादसा: 13 दिन बाद भी नहीं मिली सफलता, कैडेवर डॉग्स और रोबोट्स की ली जा रही है मदद

तेलंगाना सुरंग हादसा

नगरकुरनूल, तेलंगाना: श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (एसएलबीसी) सुरंग में 22 फरवरी को हुए हादसे के बाद से फंसे आठ लोगों को बचाने के लिए 13 दिनों से चल रहा अभियान अभी तक सफल नहीं हो पाया है। इस आपदा में सुरंग की छत का एक हिस्सा अचानक ढह गया था, जिसके कारण उस समय मौजूद 50 श्रमिकों में से 42 सुरक्षित बाहर निकल आए, लेकिन एक इंजीनियर सहित आठ लोग अभी भी लापता हैं। बचाव के लिए अब केरल पुलिस के विशेष प्रशिक्षित कैडेवर डॉग्स (शव खोजी कुत्ते) और रोबोटिक्स टीम को शामिल किया गया है।


कैडेवर डॉग्स और रोबोटिक्स की ली जा रही मदद

केरल सरकार के बयान के अनुसार, कैडेवर डॉग्स और उनके प्रशिक्षित हैंडलर गुरुवार सुबह हैदराबाद के लिए रवाना हुए। ये कुत्ते शवों और लापता व्यक्तियों का पता लगाने में सक्षम हैं। दूसरी ओर, रोबोटिक्स विशेषज्ञों की एक टीम भी आंशिक रूप से ध्वस्त सुरंग में पहुंची है, जहां रोबोट्स के इस्तेमाल की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। एनडीआरएफ, भारतीय सेना, नौसेना, सिंगरेनी खदान, बीआरओ, एनजीआरआई, जीएसआई, एलएंडटी जैसी टीमें दिन-रात राहत कार्य में जुटी हैं।


प्रति मिनट 5,000 लीटर पानी बना बाधा

सुरंग में प्रति मिनट 5,000 लीटर पानी का बहाव और भारी कीचड़ कार्य में सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है। ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार तकनीक से खोज जारी है, लेकिन सुरंग से तेज दुर्गंध के कारण अनहोनी की आशंका बढ़ गई है। तेलंगाना सरकार ने स्वीकार किया कि फंसे लोगों के जीवित मिलने की संभावना मात्र 1% है। टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) के आसपास पहुंचने के लिए गैस कटर से मशीन के हिस्सों को काटा जा रहा है, जिसे लोको ट्रेन के जरिए बाहर लाया जाएगा।


सुरंग में पानी निकासी के लिए भारी मोटरें लगाई गई हैं और वेंटिलेशन ट्यूब को ठीक करने का प्रयास जारी है। स्थिति की निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे भी स्थापित किए गए हैं। बीआरओ के वरिष्ठ अधिकारी कर्नल परीक्षित मेहरा सहित विशेषज्ञों ने सुरंग का निरीक्षण कर मिट्टी की अस्थिरता को हादसे का प्रमुख कारण बताया। यह सुरंग, जो नल्लामाला वन क्षेत्र से होकर गुजरती है, चार साल से पानी और कीचड़ की समस्या से जूझ रही है। 1978 में शुरू हुई यह परियोजना कई बार रुकावटों का शिकार हुई, लेकिन 2005 में 2,813 करोड़ रुपये की लागत से इसे मंजूरी मिली थी। अब सरकार और विशेषज्ञ हर संभव कोशिश कर रहे हैं, लेकिन चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं।

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