POLA TIHAR 2025 : अमावस्या तिथि पर धूमधाम से मनाया जाएगा पोला पर्व, बैलों को सजाकर करेंगे पूजा, जानें इसके पीछे का पौराणिक कथा

- Rohit banchhor
- 19 Aug, 2025
किसान अपने बैलों को सजाकर उनकी पूजा करते हैं, जिन्हें वे अपने बेटे की तरह मानते हैं और खेती-किसानी में उनके योगदान को सम्मान देते हैं।
POLA TIHAR 2025 : रायपुर। छत्तीसगढ़ में 23 अगस्त 2025 को भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि पर पोला पर्व बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाएगा। यह त्योहार किसानों का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है, जो खेतीहर मजदूरों और बैलों के लिए विशेष महत्व रखता है। पोला पर्व में मिट्टी के बैल और खिलौनों की पूजा की जाती है, साथ ही पारंपरिक छत्तीसगढ़ी पकवान जैसे ठेठरी और खुरमी बनाए जाते हैं, जो इस उत्सव की रौनक बढ़ाते हैं। किसान अपने बैलों को सजाकर उनकी पूजा करते हैं, जिन्हें वे अपने बेटे की तरह मानते हैं और खेती-किसानी में उनके योगदान को सम्मान देते हैं।
पोला पर्व पर मिट्टी के खिलौनों और बैलों की मांग में इजाफा देखा जा रहा है। किसान बैलों को सुबह स्नान कराते हैं, उनके सींगों पर रंग और पालिश लगाते हैं, और फूल-मालाओं से सजाते हैं। खास तौर पर इस दिन बैलों की पूजा कर उनके प्रति कृतज्ञता जताई जाती है, क्योंकि खेतों में उनका योगदान अपरिहार्य है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने मामा कंस द्वारा भेजे गए असुर पोलासुर का वध किया था, जिसके बाद से भादो अमावस्या को यह त्योहार मनाया जाने लगा। यह न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और कृषि जीवन से जुड़ा महत्वपूर्ण उत्सव बन गया है।
पोला और तीजा पर्व छत्तीसगढ़ में खास महत्व रखते हैं। तीजा के दौरान महिलाएँ मायके जाकर साड़ी पहनती हैं और उत्सव मनाती हैं, जबकि पोला बैलों के सम्मान का पर्व है। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह त्योहार कृषि पूजन से ज्यादा जुड़ा है। इस साल यह 23 अगस्त को पड़ रहा है, हालाँकि कुछ क्षेत्रों में 2 सितंबर को भी इसे पिठोरी अमावस्या या कुशोत्पाटिनी अमावस्या के रूप में मनाया जा सकता है। इस दिन ब्राह्मण कुशा को खेत से निकालकर स्नान करते हैं, जबकि छत्तीसगढ़ में बैलों की पूजा की परंपरा है।
गाय और बैलों को लक्ष्मी का रूप माना जाता है, इसलिए उनकी विशेष पूजा की जाती है। जिनके पास असली बैल नहीं होते, वे मिट्टी के बैलों की पूजा कर चंदन का टीका और माला पहनाते हैं। यह पर्व न केवल किसानों के लिए, बल्कि पूरे समुदाय के लिए एकता और समृद्धि का प्रतीक है, जहाँ सांस्कृतिक परंपराएँ और कृषि जीवन का मेल देखने को मिलता है।