Basant Panchami: बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा का विशेष महत्व, जाने शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

Basant Panchami: नई दिल्ली: बसंत पंचमी का पर्व माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है, जो बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है। इस दिन देवी सरस्वती की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, क्योंकि मान्यता है कि इसी दिन उनका अवतरण हुआ था। ज्ञान, संगीत, कला और विज्ञान की देवी मानी जाने वाली सरस्वती की उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने उन्हें प्रकट किया था। माता सरस्वती कमल के आसन पर विराजमान थीं और उनके चार हाथों में वीणा, पुस्तक, माला और वरद मुद्रा थी। ब्रह्मा जी ने उन्हें 'सरस्वती' नाम दिया और तभी से यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है। बसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्त भी कहा जाता है, अर्थात् किसी भी नए कार्य की शुरुआत के लिए यह दिन सर्वोत्तम होता है।
Basant Panchami: पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में पंचमी तिथि 2 फरवरी को सुबह 9:14 बजे से प्रारंभ होकर 3 फरवरी को सुबह 6:52 बजे तक रहेगी। उदयातिथि सिद्धांत के अनुसार, बसंत पंचमी का पर्व 3 फरवरी को मनाना श्रेष्ठ रहेगा, हालांकि विभिन्न स्थानों पर स्थानीय समय के अनुसार इसे 2 और 3 फरवरी को भी मनाया जाएगा। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा के लिए प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद पूजा स्थल पर पीले कपड़े से सजी चौकी पर माता सरस्वती की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। पहले गणेश जी और नवग्रह की पूजा कर देवी सरस्वती की विधिपूर्वक आराधना करें और उन्हें पीले रंग के फूल, हल्दी, केसर और अक्षत अर्पित करें।
Basant Panchami: बसंत पंचमी को विशेष रूप से विद्यारंभ संस्कार के लिए शुभ माना जाता है। माता सरस्वती को विद्या, संगीत और कला की देवी माना जाता है, इसलिए इस दिन किसी नए कौशल या अध्ययन की शुरुआत करना अत्यंत फलदायी होता है। इस पर्व पर माता सरस्वती को पीले रंग का भोजन अत्यंत प्रिय होता है। भक्तगण इस दिन केसर और हल्दी मिश्रित पीले चावल या मीठे पुलाव बनाकर देवी को भोग अर्पित करते हैं, जिससे सुख, समृद्धि और सौभाग्य में वृद्धि होती है। बसंत पंचमी का यह पावन पर्व ज्ञान, प्रकाश और नई ऊर्जा के संचार का प्रतीक है, जो जीवन में सकारात्मकता और उल्लास का संचार करता है।