Sawan 2025 : ‘बम बम भोले’ की गूंज के साथ शुरू हुई कांवड़ यात्रा, राम से रावण तक जुड़ा है पौराणिक इतिहास

- Rohit banchhor
- 11 Jul, 2025
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पवित्र कांवड़ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई और इसके पीछे की कहानियां क्या हैं?
Sawan 2025 : हरिद्वार। सावन का पवित्र महीना आज से शुरू हो गया है, और इसके साथ ही देशभर में ‘हर हर महादेव’ और ‘बम बम भोले’ की गूंज गूंज रही है। लाखों शिवभक्त कांवड़ यात्रा पर निकल पड़े हैं, जो 11 जुलाई से शुरू होकर 9 अगस्त तक चलेगी। यह यात्रा भगवान शिव के प्रति अटूट आस्था और तपस्या का प्रतीक है, जिसमें भक्त गंगाजल से भरी कांवड़ को कंधों पर उठाकर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर शिव मंदिरों में जलाभिषेक करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पवित्र कांवड़ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई और इसके पीछे की कहानियां क्या हैं?
कांवड़ यात्रा: आस्था और तपस्या का अनूठा संगम-
कांवड़ यात्रा सावन माह में शिवभक्तों द्वारा की जाने वाली एक पवित्र तीर्थयात्रा है। इस दौरान भक्त गंगा नदी से जल भरकर कांवड़ में रखते हैं और पैदल चलकर अपने नजदीकी शिव मंदिरों में भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। यह यात्रा न केवल शारीरिक और मानसिक दृढ़ता की परीक्षा है, बल्कि भक्ति और समर्पण का एक अनुपम उदाहरण भी है। सड़कों पर कांवड़ियों की भीड़, भक्ति भरे भजन और शिव मंदिरों में उमड़ती श्रद्धा सावन को और भी खास बनाती है।
कांवड़ यात्रा की शुरुआत: पौराणिक कथाएं-
कांवड़ यात्रा की शुरुआत को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जो इसे और भी रोचक बनाती हैं:
परशुराम और पहली कांवड़ यात्रा: एक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु के अवतार परशुराम ने सबसे पहले गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया था। इसे कई लोग कांवड़ यात्रा की शुरुआत मानते हैं।
भगवान राम और देवघर: कुछ कथाओं में भगवान राम को पहला कांवड़िया माना जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने झारखंड के देवघर में बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर गंगाजल से जलाभिषेक किया था, जिससे कांवड़ यात्रा की परंपरा शुरू हुई।
श्रवण कुमार की भक्ति: एक अन्य कथा श्रवण कुमार से जुड़ी है, जिन्होंने अपने अंधे माता-पिता को कांवड़ पर बिठाकर तीर्थयात्रा कराई थी। उनकी भक्ति और सेवा को कांवड़ यात्रा का प्रेरणास्रोत माना जाता है।
रावण और समुद्र मंथन: कुछ मान्यताओं में कांवड़ यात्रा को लंकापति रावण और समुद्र मंथन की कहानी से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि रावण ने भी भगवान शिव की भक्ति में गंगाजल से जलाभिषेक किया था। साथ ही, समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को शिव ने अपने कंठ में धारण किया, जिसके बाद गंगाजल से उनका अभिषेक किया गया।
कांवड़ को कंधे पर उठाने की परंपरा-
कांवड़ यात्रा में भक्त कांवड़ को कंधे पर उठाकर पैदल चलते हैं, जो सनातन धर्म में सेवा और समर्पण का प्रतीक है। मान्यता है कि सच्ची निष्ठा और विधि-विधान से की गई यह यात्रा भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती है। कांवड़ को कंधे पर उठाने की परंपरा सदियों पुरानी है, जो भक्तों के दृढ़ संकल्प और भगवान शिव के प्रति उनकी अटूट श्रद्धा को दर्शाती है।