महाकुम्भ 2025: आस्था के महाकुम्भ में शुरु हुआ कल्पवास, जानें इसका महत्तम और विधान,किन-किन 21 नियमों का करना होता है पालन

- Pradeep Sharma
- 13 Jan, 2025
Maha Kumbh 2025: महाकुम्भ 2025 में त्रिवेणी के पवित्र संगम में पौष पूर्णिमा सोमवार 13 जनवरी से कल्पवास की शुरुआत हो गयी है। इसके लिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आस्था की डोर में बंधे गंगा, यमुना, सरस्व
महाकुम्भ नगर। Maha Kumbh 2025: महाकुम्भ 2025 में त्रिवेणी के पवित्र संगम में पौष पूर्णिमा सोमवार 13 जनवरी से कल्पवास की शुरुआत हो गयी है। इसके लिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आस्था की डोर में बंधे गंगा, यमुना, सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम पर महीने भर के प्रवास के साथ-साथ अमृत स्नान करने के लिए पहुंच रहे हैं। हर दिन लाखों की संख्या में कल्पवासी अपने सामान के साथ मेले में आ रहे हैं।
Maha Kumbh 2025: पद्म पुराण और महाभारत के अनुसार संगम तट पर माघ मास में कल्पवास करने से सौ वर्षों तक तपस्या करने के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। विधि-विधान के अनुसार लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने संगम तट पर केला,तुलसी और जौ रोपकर एक महा व्रत और संयम का पालन करते हुए कल्पवास की शुरुआत की।
Maha Kumbh 2025: कल्पवास का अर्थ और विधान
पौराणिक मान्यता के अनुसार माघ मास में पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक कल्पवास करने का विधान है। श्रद्धालु अपनी शारीरिक और मानसिक स्थित के अनुरूप तीन दिन, पांच दिन, ग्यारह दिन आदि का संकल्प लेकर भी कल्पवास करते हैं। पूरी तरह विधि-विधान से कल्पवास करने वाले साधक बारह वर्ष लगातार कल्पवास कर महाकुम्भ के अवसर पर इसका पारण करते हैं, जो कि शास्त्रों में विशेष फलदायी और मोक्षदायक माना गया है।
Maha Kumbh 2025: पद्मपुराण में हैं 21 नियमों का उल्लेख
पद्मपुराण में भगवान दत्तात्रेय ने कल्पवास के 21 नियमों का उल्लेख किया है, जिसका पालन कल्पवासी संयम के साथ करते हैं। जिनमें से तीनों काल गंगा स्नान करना, दिन में एक समय फलाहार या सादा भोजन ही करना, मद्य,मांस,मदिरा आदि किसी भी प्रकार के दुर्व्यसनों का पूर्णतः त्याग करना, झूठ नहीं बोलना, अहिंसा, इन्द्रियों पर नियंत्रण, दयाभाव और ब्रह्मचर्य का पालन करना, ब्रह्म मुहूर्त में जागना,स्नान, दान, जप, सत्संग, संकीर्तन, भूमि शयन और श्रद्धापूर्वक देव पूजन करना शामिल है।
Maha Kumbh 2025: नियम, व्रत और संयम का पालन
पौराणिक मान्यता और शास्त्रों के अनुसार पौष पूर्णिमा के दिन श्रद्धालुओं ने ब्रह्म मुहूर्त में संगम स्नान कर, भगवान शालिग्राम और तुलसी की स्थापना कर उनका पूजन किया। सभी कल्पवासियों को उनके तीर्थपुरोहितों ने पूजन करवा कर हाथ में गंगा जल और कुशा लेकर कल्पवास का संकल्प करवाया। इसके साथ ही कल्पवासियों ने अपने टेंट के पास विधिपूर्वक जौं और केला को भी रोंपा। सनातन परंपरा में केले को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। कल्पवासी पूरे माघ मास केला और तुलसी का पूजन करेंगे।
Maha Kumbh 2025: कहा जाता है कि तीनों काल में सभी कल्पवासी नियम पूर्वक गंगा स्नान, जप, तप, ध्यान, सत्संग और पूजन करेंगे। कल्पवास के काल में साधु-संन्यसियों के सत्संग और भजन-कीर्तन करने का विधान है। कल्पवासी अपने मन को सांसरिक मोह से विरक्त कर आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग की ओर ले जाता है।