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CG: दहेज प्रताड़ना को लेकर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, पति को दहेज प्रताड़ना में फंसाया तो पति ले सकता है तलाक, पढ़िए क्या है कोर्ट का कन्डिशन

बिलासपुर : भारतीय दंड संहिता के धारा 498A एक ऐसा प्रावधान है जिसके तहत महिला अपने पति और ससुराल वालों पर दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज करा सकती हैं परंतु बहुत सारी महिलाएं इस धारा का दुरुपयोग भी करती हैं ।

जिससे पति और उनके परिवार वालों के ऊपर भारी मुसीबत aa खड़ी होती है, यहां तक उन्हें जेल तक जाना पड़ जाता है, और जब तक कोर्ट द्वारा उन्हें बेल नहीं मिल जाती या निर्दोष साबित नहीं कर दिया जाता तब तक उन्हें तकलीफ उठानी पड़ती है भले ही वह निर्दोष ही क्यों ना हो ।

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लेकिन छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि दहेज प्रताड़ना के केस को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना पति और ससुरालवालों के साथ क्रूरता की श्रेणी में आता है। इस तरह मामले में पति अपनी पत्नी से तलाक लेने का अधिकार रखता है।

दरअसल कोर्ट ने डॉक्टर पति की तलाक के अपील को स्वीकार करते हुए उसे पत्नी से तलाक पाने का हकदार माना है। इसके अलावा कोर्ट ने पीड़ित पति को टीचर पत्नी द्वारा हर महीने 15 हजार रुपए भरण पोषण देने का आदेश दिया है।

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मिली एक जानकारी के मुताबिक मूल रूप से सरगुजा जिले के चांदनी थाना क्षेत्र की रहने वाली महिला की शादी साल 1993 में डॉ. रामकेश्वर सिंह के साथ हुई थी। महिला कोरबा जिले के बालको में प्राइवेट टीचर है। डॉ. रामकेश्वर कोंडागांव के मर्दापाल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ हैं। शादी के महज सालभर के भीतर ही दोनों पति-पत्नी अलग-अलग रहने लगे थे। पत्नी के अलग रहने पर डॉक्टर ने 1996 में तलाक के लिए परिवाद दायर किया। इसके बाद उसकी पत्नी ने सरगुजा जिले के चांदनी थाने में धारा 498ए के तहत दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज करा दिया था, जिसमें पति, सास, ससुर, देवर व ननंद सहित अन्य को आरोपी बनाया गया।

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दहेज प्रताड़ना के इस केस में महिला ने अपने पति और ससुरालवालों पर एक लाख रुपए दहेज की मांग करने का आरोप लगाया था। निचली अदालत में ट्रॉयल के दौरान आरोप साबित नहीं होने पर पति और ससुरालवालों को बरी कर दिया गया।

हाईकोर्ट में की अपील

याचिकाकर्ता डॉक्टर ने दहेज प्रताड़ना के मामले से बरी होने के बाद साल 2013 में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए परिवाद दायर किया था, जिसे फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में अपील की थी।याचिकाकर्ता डॉक्टर ने कोर्ट को बताया कि उनकी पत्नी ने दहेज प्रताड़ना का झूठा केस दर्ज कराया था, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है और केस से उन्हें बरी किया है। दहेज केस में फंसाने के बाद उनकी मां की 6 जुलाई 1999 को मौत हो गई। इस दौरान भी उनकी पत्नी ससुराल नहीं आई। इस केस की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने महिला के वकील के तर्कों को भी सुना।

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सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने पाया कि शादी के बाद से दोनों पक्ष एक-दूसरे के खिलाफ आरोप लगाते रहे हैं। साल 1996 के बाद से दोनों पक्ष अलग-अलग रह रहे हैं और अदालतों में मुकदमेबाजी करते रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि दहेज प्रताड़ना के मामले को महिला ने हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है, जो पति और ससुरालवालों के साथ क्रूरता है। इस तरह के मामले में वैवाहिक संबंध टूटने के बाद जोड़ना संभव नहीं है। इन परिस्थितयों में कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए तलाक का आदेश दिया है। जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस रजनी दुबे की डिवीजन बेंच ने ये फैसला सुनाया है।