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प्रधान संपादक जय दुबे की कलम से।
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 नए साल से उम्मीदें क्यों?

प्रधान संपादक जय दुबे की कलम से।
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प्रधान संपादक जय दुबे की कलम से।

उम्मीद, इक्षाएं, अपेक्षाएं और चाहत ही जीने का वास्तविक सहारा है, अगर ये न हों तो जीवन का आधार ही नहीं रहेगा, लेकिन इनमें समन्वय, समझ जरूरी है अगर ये आवश्यकता के अनुरूप नहीं रहे तो अशांति, द्वेष, प्रतिद्वंदिता को जन्म देते हैं, और फिर परिणाम भी आना कुछ और था आता कुछ और है, और सब कुछ विचलित हो जाता है, और फिर विचलित मन कहां कुछ अच्छा कर पाता है।

नए साल से उम्मीदें लगाना तो कुछ अजीब सा है, उम्मीदें साल से नहीं अपने आप से लगाइए, उत्साह साल में नहीं अपने में होनी चाहिए, कर्म नए साल को नहीं आपको करना है, हर साल की भांति इस साल भी सूरज वैसे ही उगेगा और डूबेगा, आपने अपने सूरज को उगाया या नहीं फर्क वहां से पड़ता है, अपने आत्मविश्वास और उमंग को जिंदा किए या नहीं फर्क वहां से पड़ता है.

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संकल्प खुद को लेना होगा, बदलाव की जरूरत अगर है तो उसे समझना होगा और बदलना होगा तब ही नए साल से उम्मीदें कीजिए नहीं तो सब व्यर्थ है, पापी पाप करता रहे, चोर चोरी करता रहे, अधर्मी अधर्म करता रहे और ये उम्मीद करे की साल बहुत अच्छा हो, कैसे संभव है ? अच्छा साल होने के लिए उसे इन आदतों को बदलना होगा, तो साल जरूर अच्छा होगा। विचार कीजिए, चिंतन कीजिए, बदलाव कीजिए जो भी जरूरी है अच्छाई के लिए, तब सब अच्छा होगा, जरूर नया साल अच्छा होगा।

उत्तम स्वास्थ , शक्ति , नए संकल्प , नए विचार, नए भाव, नए साल में ये दृढ़ विश्वास हो, उत्साह हो, उमंग हो, ऊर्जा हो, आत्मविश्वास हो, राह हो, चाह हो, कर्म हो, धर्म हो, न्याय हो, नीति हो, नियम हो, दिन दुगुना, रात चौगुना तरक्की हो, नई ऊंचाइयां हो, कई व्यापार हों, साथ हो, समन्वय हो, संस्कार हो, सयम हो, शान्ति हो, ऐसा 2023 का नया साल हो।

शुभकामनाओं के साथ (प्रधान संपादक जय दुबे की कलम से।)