Breaking News

ड्रेस कोड को पहन कर स्कूल आने का संकल्प : “प्रधान पाठक ने किया संकल्प सेवा निव्रिति तक सरकारी ड्रेस कोड पहनने का।”

 

 

राजिम /रमेश वर्मा: राजिम/नावापारा/गांधी जयंती के पावन पर्व पर शासकीय प्राथमिक शाला देवरी के प्रधान पाठक संतोष कुमार साहू” प्रकृति” ने संकल्प किया कि जब तक वह शासकीय सेवा मे हैं तब तक शासन की ड्रेस कोड जो शासकीय विद्यालय मैं बच्चे पहन कर विद्यालय आते हैं उस ड्रेस कोड को पहन कर स्कूल आने का संकल्प किया।जिस ड्रेस कोड को छात्र पहनते हैं उनको अपने स्वयं की खर्च से बनवा कर पहन रहे हैं। जैसे पैंठ शर्ट जुता मोजा टाई बेल्ट आदि पहन कर विद्यालय आते हैं। अवगत हो कि यह प्रधान पाठक संतोष कुमार साहू शासन से राज्यपाल पुरस्कृत, गजानंद माधव मुक्ति बोध सम्मान, मुख्यमंत्री गौरव अलंकरण शिक्षादूत सम्मान प्राप्त प्रधान पाठक है । पति पत्नी मेडिकल कालेज को देहदान कर चुका है।और लगभग 30 से 40 लोगो को प्रेरित कर देहदान करवाया है।

 

 

प्रेस वार्ता मे बताया कि अक्सर विद्यालय मे छात्र छात्रगण ड्रेस कोड का पालन नहीं करते हैं ।शासन ड्रेस दो बार दिया जाता है। फिर भी बच्चे स्कूल पहन कर नहीं आते हैं।और रंगीन कपडे पहन कर आ जाते है।कुछ पालक भी ध्यान नहीं देते है। एसे ही कुछ भी पहना कर स्कूल भेज देते है। छात्रों की साफ सफाई पर भी विशेष ध्यान नहीं देते हैं। ड्रेस कोड महत्व नहीं समझते हैं। ईसलिए उनको प्रेरित करने के लिये मैने खुद स्कूल ड्रेस कोड पहने का निर्णय लिया। ताकि सभी छात्र रोज स्कूल ड्रेस पहन कर विद्यालय आयें।

और भी बच्चों को ड्रेस कोड का पालन करने मे सहयोग करेंगे। और विदयालय मैं भी साफ सफाई और स्वास्थ्य स्वक्षता पर भी विषेष महत्व दिया जाये। तथा बच्चे भी स्वक्छता को ध्यान दे।और ईसका अचछा प्रभाव विद्यालय मे देखने को मिल रहा हैं। अब जक भी छात्र रंगीन कपडा पहन कर स्कूल नहीं आते हैं। बच्चों को भी औऋ सभी शिक्षकगण को तथा पालकों को भी अच्छा लगता है। सभी पालक अपने बच्चों को स्कूल ड्रेस पहनाकर स्कूल भेजते हैं। परिशर मे पूर्व माध्यमिक विद्यालय भी हैं वहाँ के बच्चे भी सभी स्कूल ड्रेस पहन कर आते हैं। सभी शाला परिवार के शिक्षक भी उत्साह पूर्वक भाव प्रगट करते है। उक्त प्रधान पाठक की पहल से अधिकारी और अन्य शिक्षक भी प्रभावित हो रहे है।

 

वह बयाया कि ईस तरह पहन कर आप स्कूल जाते हैं तो कैसा लगता हैं? मुझे बहुत अच्छा लगता हैं। और अपनी बचपना याद आता है। और मैं बच्चों के साथ बच्चा बन कर मित्रवत रह कर पढाता हूँ। बच्चे बहुत खुश रहते हैं। हर क्या पहनू ऐसा टेंसन नहीं रहता हैं। और मितव्ययिता की भावना बच्चों मे आती हें। कम खर्च होता हैं। साफ सफाई निरमा कम लगता हैं। कयोंकि दो जोडी है उसी को पहनना रहता हैं।

 

बाकी समय के लिये अलग हैं। ईस तरह अच्छा लगता है। और शासन की ड्रेस कोड का पालन भी होता है। ईस नेक पहल मे मेरे शाला परिवार के सरिता ध्रितलहरे, उषा साहू, वेदकुमार यादव , संगीता साहू, प्रणय दीवान , भारत सेन, रामेश्वरी साह,मोहनी साहू, तारक सर शिक्षक गण, और समस्त ग्राम वाशियों का बल और साहस मिला है। यह मेरी पहल आप सबको कैसा लगा ।