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Premanand ji Maharaj: वृंदावन के संत स्वामी प्रेमानंद महाराज कह दी ये बात, कई दिन नहीं आएगी नींद

Premanand ji Maharaj:

Premanand ji Maharaj: वृंदावन के संत स्वामी प्रेमानंद महाराज कह दी ये बात, कई दिन नहीं आएगी नींद


Premanand ji Maharaj:मथुरा: स्वामी प्रेमानंद महाराज आज के समय में युवाओं से लेकर आम गृहस्थों, संतों और महात्माओं के लिए प्रेरणास्रोत बन चुके हैं। उनकी बातें लोगों को गहराई से प्रभावित कर रही हैं। हाल ही में, उन्होंने गर्भ में बच्चे के विकास के विषय में धर्मग्रंथों के आधार पर कुछ ऐसा कहा, जिसे सुनकर कई लोग परेशान हो गए।

Premanand ji Maharaj:प्रेमानंद जी ने एक वायरल वीडियो में बताया कि मानव शरीर कैसे बनता है। वे कहते हैं कि जीव विभिन्न योनियों को भोगकर जब मानव शरीर प्राप्त करता है, तो सबसे पहले वह वर्षा के माध्यम से अन्न में पहुँचता है और फिर माता-पिता के गर्भ में। माता का रज और पिता का वीर्य मिलकर बच्चे की रचना करते हैं। 

Premanand ji Maharaj:गर्भ के विकास के क्रम में, पहले पांच रातों में वह बुदबुदा बनता है, फिर दस रातों में बेर के आकार का हो जाता है। एक महीने में यह अंडे के जैसा रूप ले लेता है, और दो महीने बाद हाथ-पैर का निर्माण होता है। तीन महीने में नख, रोम, त्वचा, हड्डियाँ और लिंग का निर्धारण होता है। चार महीने में शरीर में रक्त संचालन प्रारंभ होता है।

Premanand ji Maharaj:बच्चे का अनुभव: नर्क का अहसास

Premanand ji Maharaj: प्रेमानंद जी का कहना है कि जब बच्चा पाँचवे महीने में पहुँचता है, तब उसकी चेतना जाग्रत हो जाती है। उसे भूख-प्यास लगने लगती है और उसे गर्भ का भारी कष्ट अनुभव होने लगता है। छठे महीने में उसे इतने कष्ट होते हैं कि वह त्राहिमाम कर उठता है। वह झिल्ली में लिपटा रहता है, जबकि आसपास मलाशय और मूत्राशय होते हैं। माँ जब खट्टे और नमकीन पदार्थ खाती हैं, तो उन चीजों का कष्ट बच्चे को महसूस होता है।

Premanand ji Maharaj:माँ के भोजन का कष्ट

Premanand ji Maharaj:माँ के द्वारा खाए गए मसालेदार और खट्टे पदार्थ बच्चे के लिए भारी कष्ट बन जाते हैं। वह वहाँ पर कीड़ों द्वारा भी कष्ट भोगता है और उसे मूर्छा आ जाती है। इस समय बच्चे की स्मरण शक्ति जागृत होती है और वह अपने पिछले जन्मों को याद करने लगता है। 

Premanand ji Maharaj:सातवें महीने में उसे अपनी कई जन्मों की यादें आती हैं और वह गर्भ में घोर अशांति अनुभव करता है। इस अवस्था में बच्चे की ज्ञान शक्ति पूरी तरह जागृत हो जाती है, जबकि माँ को लगता है कि बच्चा ठीक है। असल में, बच्चा भारी कष्ट में होता है और केवल नाभि से जीवित रहता है।


Premanand ji Maharaj:बच्चा उस स्थिति से बाहर निकलने की प्रार्थना करता है और आठवें-नौवें महीने में उसकी यह प्रार्थना स्वीकार होती है। अंततः, प्रसव वायु उसे धक्का देकर माँ के गर्भ से बाहर निकाल देती है।


Premanand ji Maharaj: प्रेमानंद महाराज अंत में कहते हैं कि इसी गर्भ में रहकर हम सभी आए हैं। इन द्वारों से निकले और फिर इन्हीं द्वारों में बंधे हुए हैं। इसलिए इस जीवन में भगवान का नाम जपें, ताकि हमारी बुद्धि शुद्ध हो सके और हम इस चक्र से मुक्ति पा सकें।

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