प्रदेश के अतिथि विद्वान का दर्द, अब तक नहीं मिल रहा फिक्स वेतन, घोषणाओं पर अमल करे सरकार
भोपाल। प्रदेश सरकार से नाराज अतिथि विद्वान अपनी मांगों को लेकर अतिथि शिक्षकों की तरह मोर्चा खोल सकते हैं। अतिथि विद्वान संघ का कहना है कि हमें विगत कई सालों से पॉलिसी बनाने का आश्वासन देकर टाला जा रहा है। तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अतिथि विद्वानों के लिए कई घोषणाएं की थीं लेकिन अमल नहीं हुआ। राजधानी में पत्रकारों से चर्चा करते हुए अतिथि विद्वान नियमितिकरण संघर्ष मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष सुरजीत भदौरिया और अन्य पदाधिकारियों ने कहा कि महाविद्यालयों में 25 साल पढ़ाने के बाद भी वे कांग्रेस और बीजेपी की सत्ता में फुटबाल की तरह बनकर रह गए हैं। अब एक साल बाद फिर वे सरकार को याद दिला रहे हैं कि उनके लिए की गई घोषणाओं पर सरकार अमल करे।
नहीं मिला 50 हजार फिक्स वेतन-
मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भदौरिया ने कहा कि विगत 11 सितम्बर को पूर्व सीएम शिवराज ने अपने निवास पर बुलाई गई अतिथि विद्वानों की महापंचायत में जो घोषणा की थी, उसमें से एक पर भी अमल नहींकिया गया। हम सरकार से पूछते हैं क्या हुआ वादों का? अतिथि विद्वानों को पहले एक कार्यदिवस के 1500 रुपए मिलते थे, जिसे पूर्व सीएम शिवराज ने 50 हजार रुपए तक महीने फिक्स वेतन के रूप में देने को कहा था।
इसके विपरीत सिर्फ दो हजार रुपए कार्यदिवस के हिसाब से वेतन दिया जाता है। ऐसे में किसी महीने 22 दिन तो किसी महीने 25 दिन का वेतन मिलता है। वहीं विभाग द्वारा ट्रांसफर के नाम पर हर साल अतिथि विद्वानों को यह कहकर हटा दिया जाता है कि महाविद्यालय में अतिथि विद्वान कार्यरत नहीं है। इसके अलावा अन्य कोई सुविधा भी नहीं दी जा रही है।
इसके विपरीत सिर्फ दो हजार रुपए कार्यदिवस के हिसाब से वेतन दिया जाता है। ऐसे में किसी महीने 22 दिन तो किसी महीने 25 दिन का वेतन मिलता है। वहीं विभाग द्वारा ट्रांसफर के नाम पर हर साल अतिथि विद्वानों को यह कहकर हटा दिया जाता है कि महाविद्यालय में अतिथि विद्वान कार्यरत नहीं है। इसके अलावा अन्य कोई सुविधा भी नहीं दी जा रही है।
अतिथि विद्वानों के सभी संगठनों में रोष-
मांगे पूरी ना होने से नाराज अन्य अतिथि विद्वान संगठनों में भी रोष है। उनका कहना है कि मांगे पूरी नहीं हुई तो आंदोलन की राह चुनने पर मजबूर होंगे। अतिथि विद्वान महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. देवराज सिंह का कहना है कि शासन प्रशासन को बड़ी ही गंभीरता से सोचना चाहिए कि क्या घोषणा हुई, क्या आदेश निकला।