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छायावाद साहित्य के प्रवर्तक मुकुटधर पाण्डे जी के ऊपर शोध ग्रंथ पर अंतराष्ट्रीय चर्चा

अंतराष्ट्रीय  चर्चा

छायावाद साहित्य के प्रवर्तक मुकुटधर पाण्डे जी के ऊपर शोध ग्रंथ पर अंतराष्ट्रीय चर्चा



गौरी शंकर गुप्ता घरघोडा: डॉ वासु देव यादव अंतर्राष्ट्रीय साहित्यकार रायगढ़ ने आज यहां जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि अंतराष्ट्रीय हिंदी, छत्तीसगढ़ी, उड़िया एवम अन्य भाषा साहित्य शोध संस्थान रायगढ़ के संस्थापक डॉ मीनकेतन प्रधान  प्रेमिल ने अपनी सहयोगी संस्थान देवम फाउंडेशन कला एवम संस्कृति संस्थान  बुल्गारिया (यूरोप) के साथ मिल कर  स्थापित गरिमामई अंतर्राष्ट्रीय मंच  से मुकुटधर पाण्डेय जी की जयंती के अवसर पर  सन 2023 में उनके ऊपर लिखी गई एक शोध ग्रंथ छायावाद के सौ बर्ष और मुकुट धर पांडे पुस्तक पर साहित्य प्रेमी व शोधार्थी छात्रों के लिए उसकी महत्ता पर प्रकाश डालने के लिए इस अंतराष्ट्रीय मंच पर ऑन लाईन  एक दिवसीय  चर्चा परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसमे  भारत सहित कनाडा, बुल्गारिया सहित अन्य विदेशी साहित्य कारों ने अपने अपने सारगर्भित विचार रखे।


डॉ वासु देव यादव वरिष्ठ साहित्यकार ( रायगढ़ छत्तीस गढ़ की धरती से ) ने अपने वक्तव्य  में कहा कि _ "छायावाद के सौ वर्ष और मकुटधर पांडेय “ पुस्तक के ऊपर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा के संदर्भ में इस पुस्तक के महत्व और इसकी विशेषता पर जब हम चिंतन करते हैं तो पाते हैं कि जब छायावाद के प्रारंभ काल की चर्चा_परिचर्चा आरंभ हुई तो  साहित्य जगत में एक बहस सी छिड़ गई, एक हलचल सी मच गईं।


परिणामतः अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित मूर्धन्य कवियों की शैलियों  को बारीकी से खंगाला जानें लगा।ऐसे में  साहित्य लेखन में 30 वर्षों से समर्पित, कई मंच से सम्मानित डॉ मीन केतन प्रधान प्रेमिल,छत्तीसगढ़ के ख्याति प्राप्त, विश्व साहित्य पटल   के सशक्त हस्ताक्षर, अध्यक्ष, अध्ययन मंडल ( हिन्दी)  शहीद नंद कुमार पटेल विश्व विद्यालय रायगढ़  छत्तीसगढ़ के  अथक प्रयासों से  छायावाद के सौ वर्ष और  मुकुटधर पांडेय नाम की कालजई  कृति  अस्तित्व में आई जिसे ग्रंथ  कहना अतिशयोक्ति नही होगा। इस ग्रन्थ में देश_ विदेश के 172   विद्वान साहित्यकारों ने अपने_,अपने सारगर्भित  विचार  छायावाद पर गहन शोध के पश्चात रखें हैं , जो कि लगभग एक हज़ार पन्नों में सुशोभित है,यानि सही मायने में यह छायावाद पर एक शोध है ।
यह शोध ग्रंथ  हिन्दी साहित्य के लिए लालायित प्रेमियों के लिए  एवम शोधार्थी छात्रों के लिए मील का पत्थर साबित  होगा जिससे इसकी उपयोगिता अनंत काल तक बनी रहेगी।


 इस ग्रंथ के भाग दो में छायावाद ( प्रवृत्ति एवम विकास) की विवेचना में डॉ गीता कौशिक ने ग्यारह साहित्यकारों के पुस्तक से, डॉ मुकेश चंद ने सात सहायक ग्रंथों से, डॉ प्रेमा वि. गाडवी ने तीन, डॉ तृप्ति श्रीवास्तव   ने  छः पुस्तकों से संदर्भ ले कर, डॉ प्रियंका भट्ट ने चौदह पुस्तकों का संदर्भ ले कर, प्रो. डॉ शोभना कोक्काडन ने पांच सहायक ग्रंथों की मदद ले कर, डॉ ज्योति किरण ने बारह पुस्तकों से संदर्भ ले कर, सबिता एस ने नौ ग्रंथों की मदद से,प्रियंका राम ने आठ ग्रंथो की मदद से, इसी तरह  इस शोध ग्रन्थ में उल्लेखित अन्य  लगभग सभी 172 विद्वानों  ने कहीं न कहीं से संदर्भ ले कर  छायावाद के सौ बर्ष और मुकुट धर पांडेय को  अपनी कलम से एक अमर कृति बना दिया है  और डॉ मीन केतन प्रधान प्रेमिल जी के संपादन ने तो इसमें चार चांद  टांक कर विश्व साहित्य प्रेमियों के  समक्ष सरलता से उपलब्ध करवा  कर अविस्मरणीय कार्य कर दिया है जो निश्चित रुप से किसी भी चमत्कार से कम नहीं है।

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