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एटीएम की तर्ज पर नोट उगलने वाले विभागों में वर्षों से जमे शासकीय सेवक सरकारी धन की हेरा फेरी कर हो गए साहूकार

सरकारी धन की हेरा फेरी

घरघोड़ा। शासन प्रशासन के फरमान के अनुसार एक ही स्थान पर 3 वर्ष से अधिक समय तक कोई भी अधिकारी या कर्मचारी पदस्थ नहीं रह सकता है। लेकिन कई बार तबादला हो जाने के बावजूद तहसील क्षेत्रों में मलाईदार विभाग में 25 से 30 वर्षों तक कुंडली मारे बहुत से सरकारी नुमाइंदे सरकार के नियम कानून को ताक में रखकर दिशा निर्देश का सरासर उल्लंघन कर रहे हैं। क्षेत्र के कई शासकीय विभाग में मलाईदार शाखाओं में पदस्थ अधिकारी कर्मचारियों के रुतबे का असर देखिए कि कई बार के तबादले की सरकारी प्रक्रिया भी इन्हें हटा नहीं पाई, पिछले कई वर्षों में तहसील तथा जिला प्रशासन के आला अफसरों ने 5 साल तक प्रशासन का स्वाद चखा ही नहीं है वहीं अजगर की भांति 3 वर्ष तो क्या कई कई वर्षों से अधिक समय से एक ही जगह पर जमे बैठे कर्मचारियों का शासन प्रशासन में बैठे नौकरशाहों ने इन का बाल तक बांका नहीं कर सके,


क्षेत्र में ऐसी कई शाखाएं हैं जिनको मलाईदार विभागों के नाम से जाना जाता है इन विभागों पर पदस्थ कर्मचारियों के ऊपर यदि कभी स्थानांतरण की कार्रवाई होती है तो उनके आका अर्थात क्षेत्रीय नेता से मित्रता का असर कहिए या फिर इन कर्मचारियों का दबदबा कि इनका तबादला रातों-रात निरस्त हो जाता है उल्लेखनीय है कि तबादले का मौसम आते ही दलाल नुमा क्षेत्रीय नेता इसी अवसर की ताक में एकाएक सक्रिय हो जाते हैं और तबादला करवाने या रुकवाने के एवज में लाखों लेते हैं शासन प्रशासन के फरमान के मुताबिक किसी भी अधिकारी कर्मचारी का 3 वर्ष से अधिक समय तक एक ही स्थान पर पदस्थ रहने पर तबादला करने की प्रक्रिया के पीछे कारण भले ही ये रहा हो पर बदलाव या तबादले से जहां सरकारी कामकाज में पारदर्शिता को बल मिलता है वहीं एक ही जगह पर वर्षों से कब्जा जमाए बैठे ऐसे कर्मचारियों जो भ्रष्टाचार की जड़ों को वर्षों से सींच रहे हैं तो क्या उनसे शासन की जनकल्याणकारी योजनाओं के विकास और तरक्की की उम्मीद की जा सकती है?


उल्लेखनीय है कि पूर्व में चुनाव आयोग के द्वारा शासन-प्रशासन को स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किया गया था कि मतदान क्षेत्रों में कोई भी अधिकारी-कर्मचारी अगर 3 वर्षों से एक ही जगह पदस्थ है ऐसी स्थिति में उनका तबादला अन्यत्र किया जाए किंतु चुनाव आयोग के निदेर्शों के पालन में केवल अधिकांश आईपीएस/आईएएस अधिकारी ही प्रभावित हुए बाकि चुनाव आयोग के दिशा निर्देश के दायरे में आने वाले अधिकारी/कर्मचारियों तक तबादले की आंच नहीं पहुंच पाई। इससे यह प्रतीत होता है कि चुनाव आयोग के दिशा निदेर्शों को शासन प्रशासन ने गम्भीरता से नहीं लिया।

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