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Faadu A Love Story Review:ख्वाब देखना आसान, पूरा करना कठिन, पढ़िए मुंबई के भीतर बसे बंबई की दिल छू लेने वाली कहानी

Faadu A Love Story Review

Faadu A Love Story Review:मुंबई: मुंबई की झोपड़पट्टी में बैठकर यह ख्वाब देखना कि मुंबई के पॉश इलाके में अपना भी खुद का एक आलीशान फ्लैट होगा, बड़ा आसान है। लेकिन उस ख्वाब को पूरा करना बहुत ही कठिन है। ऐसा भी नही है कि ख्वाब पूरे नहीं होते हैं, होते है। लेकिन उस ख्वाब को पूरा करते करते हम अपनों से बहुत पीछे छूट जाते हैं। पैसा चीजों को खरीदता है, लेकिन शिकायत तब होने लगती है जब पैसा इंसान को खरीदने लगता है।

 

मुंबई की झोपड़पट्टी में रहने वाला अभय दुबे आॅटो चलाने वाले का बेटा है। पढ़ाई में अव्वल। 12वीं में 94.7 प्रतिशत से उत्तीर्ण और सपना मुंबई का बहुत बड़ा आदमी बनना। अमीर बनने के लिए कुछ भी करने को तैयार लेकिन फिर उसकी मुलाकात मंजरी से होती है। वह 12वीं में 92.7 प्रतिशत अंक लेकर से मुंबई में आगे की पढ़ाई करने आई है।

 

‘फाडू अ लव स्टोरी’ सीरीज में बदलते देश के विकसित देश बनने की कोशिशों में कहीं पीछे छूट गई इंसानियत की बेबसी की कहानी है और साथ ही एक ऐसी प्रेम कहानी जो पर्दे पर दिखने के बावजूद अपनी गंध महसूस कराती चलती है।

 

इस देश को इंडिया समझने वालों को अक्सर कम ही समझ आता है कि इसमें एक भारत भी बसता है। बढ़ते रेपो रेट और घटती नौकरियों के बीच की ये एक अलग ही दुनिया है। कुछ कुछ मल्टीवर्स जैसी। यहां एक दुनिया के लोगों को अपने समानांतर सांस ले रही दूसरी दुनिया कम ही दिखती है।

 

कुछ कुछ वैसे ही जैसे इन दिनों देश की आर्थिक राजधानी कहलाने वाली मुंबई है। इस शहर में एक बंबई अब भी बसता है। ये दिन रात काम करता है। ऐसी जगहों पर रहता है जहां की तस्वीरें देखकर भी आपको उबकाई आ सकती है। अश्विनी अय्यर तिवारी की वेब सीरीज फाडू अ लव स्टोरी इसी बंबई की कहानी है।

 

यहां गंदी गलियों और बजबजाती नालों के बीच लोग ऊंचे अट्टालिकाओं के सपने देखते है। इस सीरीज में बदलते देश के विकसित देश बनने की कोशिशों में कहीं पीछे छूट गई इंसानियत की बेबसी की कहानी है और साथ ही एक ऐसी प्रेम कहानी जो पर्दे पर दिखने के बावजूद अपनी गंध महसूस कराती चलती है।

 

देश में प्रतिभावान और मेहनती लोगों की कमी नहीं है। जरूरी है उनकी प्रतिभा को परखकर उन्हें आगे बढ़ाया जाए। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो बिना किसी सहारे के अपने बलबूते आगे बढ़ते हैं। वेब सीरीज फाडू अ लव स्टोरी के अभय दुबे के जीवन में आगे बढ़ने के जो भी मौके मिले उसने उन्हें हाथ से जाने नहीं दिया और देखते ही देखते मुंबई का अमीर आदमी बन जाता है।

 

लेकिन जब पैसा आता है तो धीरे धीरे रिश्ते भी बिगड़ने शुरू होते हैं। और, जब बात सुपर पावर की आती है तो सुपर पावर अच्छा या बुरा नहीं होता है, बल्कि हमेशा बड़ा होता है। जिस तरह से बुलडोजर लोगों को कुचलता भी है और नव निर्माण का भी काम करता है। इसी तरह से एक सफल आदमी की भी स्थिति हो जाती है।

 

 

‘निल बटे सन्नाटा’, ‘बरेली की बर्फी’ और ‘पंगा’ जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुकी अश्वनी अय्यर तिवारी ने वेब सीरीज ह्यफाडू अ लव स्टोरीह्ण को प्रभावशाली ढंग से पेश किया है। कामयाबी हासिल करने का कोई शॉर्टकट रास्ता नहीं होता है और अगर शॉर्ट कट से चलकर कामयाबी मिल भी जाती है तो वह कामयाबी ज्यादा दिनों तक चलती भी नहीं।

 

फाड़ू में अश्वनी अय्यर तिवारी ने अभय दुबे के किरदार को बहुत ही प्रभावी ढंग से पेश किया है। भले ही शुरूआत में अमीर आदमी बनने के लिए उसके पास मटका धंधा चलाने के अलावा और भी बहुत सारे आइडिया हो, लेकिन शादी के बाद वह ऐसा रास्ता चुनता है जिससे समाज और परिवार के लोग उस पर अंगुली ने उठा सके।

 

एक आम आदमी से अमीर आदमी बनने तक बनने के सफर को पावेल गुलाटी ने बहुत ही बेहतरीन तरीके से जिया है। पावेल गुलाटी का किरदार एक ऐसे महत्वाकांक्षी इंसान की परछाई है जो भावनात्मक उथल-पुथल से गुजरते हुए अपनी किस्मत खुद बनाता है। सयानी खेर कोंकण से मुंबई आगे की पढ़ाई के लिए आती हैं और मुंबई की दुनिया उनको बहुत ही अजीब सी लगती है।

 

वेब सीरीज फाडू अ लव स्टोरी तकनीकी रूप से और बेहतर हो सकती थी। कहानी को हकीकत के ज्यादा से ज्यादा करीब रखने के लिए अश्विनी ने यहां मुंबई की उन बस्तियों को दिखाने की कोशिश की है जिनकी शक्ल सूरत आजादी का अमृत महोत्सव मनाने के बाद भी ज्यादा बदली नहीं है। सिमटती जमीन में बढ़ती आबादी, और उसी अनुपात में बढ़ती जा रही गंदगी, बीमारियों और बेबसी की कमाल कहानी है, वेब सीरीज फाडू अ लव स्टोरी।

 

सीरीज की सिनेमैटोग्राफी भी किसी किरदार का काम करती है। नवागत प्रकाश ने मुंबई की झोपड़पट्टियों को कैनवस पर उनकी पूरी रंग, रंगत और बू के साथ उतार दिया है। संपादन कहानी के अनुसार ही है, बस सीरीज का संगीत थोड़ा बेहतर होता तो आनंद की मात्रा थोड़ी और बढ़ सकती थी।

 

 

मुंबई से हर रोज अपने पिता को खत लिखकर अपने बारे में बताती है। सयानी के पिता पोस्टमैन है और उनका मानना है कि फोन पर बात करने के बजाय खत में भावनाओं को अच्छी तरह से समझा जा सकता हैं। इन दोनों के अलावा अरसे बाद दिखे दयाशंकर पांडे भी प्रभावित करते हैं। अभिलाष थपलियाल, हितेन राठौर, कुंज आनंद आदि भी अपने अपने किरदारों में वास्तविक दिखने की पूरी कोशिश करते हैं और सफल भी रहते हैं।

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