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मंदी के मुहाने पर देश, युवाओं के चेहरे पर अनिश्चितता के बादल

महेन्द्र कुमार साहू। कोरोना के बाद से उपजे आर्थिक मंदी का दौर समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है। हालांकि दुनिया ने कोरोना के साथ जीना सीख लिया है। खबर आ रही है कि जिस तरह महंगाई से लड़ने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी की जा रही है। यह देश को मंदी के मुहाने पर ले जा रही है। हालांकि इन सबके बावजूद अभी कई देश महंगाई से लड़ने ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी जारी रख सकते हैं।

महंगाई पर काबू करने के लिए ब्याज दरों में की गई बढ़ोतरी के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में 2023 में मंदी के असर रहेंगे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि महंगाई के खिलाफ जंग अभी समाप्त नहीं हुई है।

ऊंची ब्याज दरें उद्योगों को पलायन करने को बाध्य कर सकते हैं। यह बात सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स और बिजनेस रिसर्च की ओर से कही गई है। वार्षिक विश्व आर्थिक लीग टेबल के दौरान ब्रिटिश कंसल्टेंसी की ओर से जारी रिपोर्ट में गया है कि साल 2022 में ग्लोबल इकोनॉमी 100 ट्रिलियन डॉलर भले ही रहा हो। वहीं 2023 में इसमें भारी गिरावट की सम्भावना है।

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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष आईएमएफ और विश्व बैंक ने भी 2023 में वैश्विक आर्थिक मंदी का अनुमान लगा है। ब्रिटिश कंसल्टेंसी फर्म सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च (सीईबीआर) ने अपनी एक रिपोर्ट में 2023 में मंदी की आशंका व्यक्त की है।

अक्टूबर में जारी रिपोर्ट में आईएमएफ ने कहा था कि 2023 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक तिहाई से अधिक की गिरावट आ सकती है। इसी तरह सितंबर में जारी रिपोर्ट में विश्व बैंक ने भी कहा था कि 2023 दुनिया में आर्थिक मंदी आ सकती है।

आप लोग शायद सोच रहे होंगे कि ब्याज में बढ़ोतरी से महंगाई और मंदी का क्या कनेक्शन? ऐसा माना जाता है कि ब्याज बढ़ने से लोग उधार कम करके सेविंग करना शुरू कर देते हैं। इससे मार्केट में प्रोडक्ट्स की डिमांड कम होती है। डिमांड कम तो महंगाई कम।

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महंगाई कम करने के लिए बैंक ज्यादा ब्याज के फॉर्मूले पर चली तो व्यापारी और कंज्यूमर्स दोनों के लिए लोन लेना महंगा हो जाएगा। इससे व्यापारी से लेकर आम लोग तक खर्च करने से बचेंगे। इन सब चीजों का असर देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीप पर पड़ेगा।

ग्लोबल इन्फ्लेशन रेट यानी महंगाई दर जो 2022 में 8.8% थी, वो इस साल घटकर 6.5% पर और 2024 तक 4.1% पर आ जाएगी। इन सब के बीच दुनिया भर के देशों के जीडीप ग्रोथ में गिरावट देखने को मिलेगी, जो आर्थिक मंदी को दर्शाता है।

ग्लोबल ग्रोथ रेट जो 2021 में 6% थी, वह 2022 में घटकर 3.2% पर आ गई और 2023 में 2.7% पर आ जाएगी। ये 2001 के बाद से सबसे कमजोर डेवलपमेंट प्रोफाइल है। 2023 में 25% चांस है कि ग्लोबल जीडीपी ग्रोथ इस साल 2% से भी कम रहे। जो वैश्विक मंदी की ओर इशारे कर रही है।

मंदी को सरल शब्दों में कहें तो आम आदमी के जेब में पैसों की कमी। जब जेब में पैसे नहीं होंगे, तो खरीदारी कम होगी। यानी मार्केट से डिमांड का लोड घट जाएगा, डिमांड में कमी मतलब प्रोडक्शन रेट में कटौती। जब कंपनियां प्रोडक्शन कम करेंगी तो जाहिर है मैन पावर भी कम लगेगा। ऐसे में लोगों की नौकरियां खतरे में पड़ जाएगी। और बेरोजगारी दर बढ़ेगी।

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10 साल बाद भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाली देश बन जाएगी। 2035 तक भारत की अर्थव्यवस्था 10 लाख करोड़ डॉलर पहुंच जाएगी। अन्य देशों की बात करें तो अगले 15 साल तक ब्रिटेन छठवीं और फ्रांस सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बने रहेंगे, हालांकि ब्रिटेन का अन्य यूरोपीय देशों से अधिक तेजी से विकास करना थम सकता है।

ऐसी खबर जारी कर हमारा मकसद लोगों को डराना कतई नहीं है। युवाओं में अनिश्चिंतता ने भटकाव की स्थिति को जन्म दिया है। वहीं कुछ युवा अन्य क्षेत्रों में अवसर तलाश करने में लगे हैं। वर्तमान परिपेक्ष्य में युवाओं से उनके रोजगार की गारंटी खत्म होते जा रही है। जिससे असंतोष की स्थिति जन्म लेती जा रही है।