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वक्फ बिल पर जेपीसी में भारी हंगामे के बाद विपक्ष के सभी सदस्य निलंबित

वक्फ बिल

वक्फ संशोधन बिल, 2024 पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में भारी हंगामे के बाद विपक्ष के दस सांसदों को एक दिन के लिए निलंबित कर दिया गया। शुक्रवार को हुई इस बैठक में विपक्षी सदस्यों और सत्तापक्ष के बीच तीखी नोकझोंक और हंगामे के कारण यह कार्रवाई की गई।

निलंबित किए गए सांसदों में कल्याण बनर्जी, मोहम्मद जावेद, ए राजा, असदुद्दीन ओवैसी, नासिर हुसैन, मोहिबुल्लाह, एम. अब्दुल्ला, अरविंद सावंत, नदीमुल हक और इमरान मसूद शामिल हैं।


क्या है मामला?

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे के अनुसार, "विपक्षी सांसदों, विशेष रूप से ओवैसी, का मानना था कि जम्मू-कश्मीर का पूरा प्रतिनिधित्व नहीं किया गया और मीरवाइज उमर फारूक को बुलाया जाना चाहिए था।"

दुबे ने कहा, "विपक्षी सांसदों के सुझाव के बाद बैठक, जिसमें विषयों पर विस्तृत चर्चा होनी थी, 24 और 25 जनवरी के लिए स्थगित कर दी गई। लेकिन जब मीरवाइज को बुलाया गया, तो विपक्षी सांसदों ने हंगामा किया, अभद्रता की और संसदीय लोकतंत्र के खिलाफ आचरण किया।"

विपक्ष के आरोप

विपक्षी सदस्यों का दावा है कि उन्हें मसौदा विधेयक के प्रस्तावित संशोधनों का अध्ययन करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया। उनका आरोप है कि बीजेपी दिल्ली चुनावों को ध्यान में रखते हुए वक्फ संशोधन बिल पर तेज़ी से फैसला लेने का प्रयास कर रही है।

टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी और कांग्रेस सांसद नासिर हुसैन ने बैठक के दौरान विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि समिति "एक तमाशा बन गई है।" उन्होंने बैठक को स्थगित कर 30 या 31 जनवरी को करने की मांग की, लेकिन उनकी बात को अनसुना कर दिया गया।

हंगामे के बीच बैठक स्थगित बैठक के दौरान स्थिति तनावपूर्ण हो गई। मीरवाइज उमर फारूक, जो कश्मीर घाटी के नेता हैं और धारा 370 हटने के बाद पहली बार घाटी से बाहर आए थे, के समक्ष समिति ने अपनी चर्चा पुनः शुरू की।

कल्याण बनर्जी ने कहा कि अध्यक्ष जगदंबिका पाल "किसी और के निर्देशों पर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने विपक्षी सांसदों की मांग को नज़रअंदाज़ किया।" टीएमसी सांसद ने आरोप लगाया कि बैठक के दौरान "अघोषित आपातकाल" जैसा माहौल था और बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने विपक्षी सदस्यों को निलंबित करने में भूमिका निभाई।

अगली बैठक का शेड्यूल

अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने घोषणा की कि अगली बैठक 24 और 25 जनवरी को होगी। लेकिन विपक्ष ने इस फैसले का कड़ा विरोध करते हुए इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ बताया। विपक्षी सांसदों का यह भी कहना है कि उनकी आवाज़ दबाने और संसदीय प्रक्रियाओं को बाधित करने के लिए यह कदम उठाया गया है। मामला अब और गंभीर होता दिख रहा है।


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