आपबीती- “उनको नहीं पता मैं यहां आती हूं” इस गली में दुत्कार,प्रताड़ना, शोषण, बदनामी…हे! भगवान…तेरी लीला…
अविनाश दुबे,रायपुर। मौसम चाहे कड़ाके की सर्दी का हो या झुलसा देने वाली गर्मी का, समय दोपहर के 12 बजे हों या रात के, इस रोड से गुजरने पर आपको बहुमंजिला इमारतों में खिड़की से झांकते चेहरे हमेशा दिखाई देंगे. खिड़की एक ही पर चेहरे बहुत,अलग से छपा मेकअप और उसपर बिखरी मुस्कान,असली होगी तो बस उस चेहरे के पीछे की मजबूरी जिसे छुपाती या छुपाने की कोशिश करती वो महिलाएं.
जी हां….अंग्रेजों के जमाने में मुजरे की अपनी महफिलों के चलते अय्याशी का अड्डा बना ये इलाका अब दिल्ली-एनसीआर का सबसे चर्चित रेडलाइट एरिया है नाम है जीबी रोड. गारस्टिन बास्टिन रोड यानी जीबी रोड का नाम तो साल 1965 में बदलकर स्वामी श्रद्धानंद मार्ग कर दिया गया लेकिन न तो इससे इलाके की पहचान सुधरी और न हालात. सच्चाई तो ये है कि यहां की सूरत-ए-हाल दिन-ब-दिन खराब ही हुई है.
इनको सेक्स वर्कर के नाम से पहचाना जाता है –
इनकी इतनी पहचान ही काफी है कि इनको समाज और सिस्टम ने आखिरी छोर पर वहां खड़ा किया है जहां रोज की दुत्कार है, प्रताड़ना है, शोषण है, बदनामी है और बदइंतजामी भी है. इन महिलाओं का भी समाज और सिस्टम से जैसे भरोसा उठ गया है. वे अब अपने दम पर अपनी नियति बदलने में जुटी हैं. ज्यादातर कुछ पैसों का इंतजाम होते ही सम्मानजनक काम तलाश ले रही हैं, हालांकि कुछ ऐसी भी हैं जिन्होंने इस हाल को ही अपनी तकदीर मानकर इसके हिसाब से जीना सीख लिया है.
क्या हुई बातचीत –
जीबी रोड की 36 साल की महिला पर फोन लाइन पर बात चीत करने का प्रयास किया. बड़े अनुरोध के बाद महिला का नाम बिमला (बदला हुआ नाम) अपने कमरे की दूसरी सहेली सारिका (बदला हुआ नाम) के साथ कांफ्रेस पर जुड़ती हैं. सारिका बताती हैं कि बिमला का पांच साल का एक बेटा भी है जो उसे भी बहुत प्यार करता है. ये बिमला के एक कस्टमर का बेटा है. आपका कोई बच्चा नहीं है? सवाल पर सारिका दो टूक कहती हैं, मैंने नहीं किया. उनका उलटा सवाल था अब आप ही बताओ, कस्टमर का क्या बच्चा करना. बच्चे को लाने के लिए वैसा माहौल भी तो होना चाहिए. अब सावल मैने फीर दागे…
तो कैसे माहौल में पलते हैं जीबी रोड के बच्चे?
पता चला कि जब तक बच्चा छोटा रहता है, मां पालती है. फिर उस बच्चे को हॉस्टल में रख दिया जाता है. वहीं कई औरतें अपने बच्चों को दिल्ली से दूर दूसरे शहरों में हॉस्टल में रखकर पालती हैं. बताते हैं कि कई बच्चों ने पढ़-लिखकर अपनी मां को इस दलदल से निकालकर इज्जतदार जिंदगी दी है. एक लड़का डॉक्टर बनकर अपनी मां को यहां से दूर ले गया. वहीं दो बेटियों ने भी ऐसा ही किया, नौकरी लगते ही वो अपनी मां को यहां से ले गईं.
अब जीबी रोड का मुजरे पर एक नजर
जीबी रोड कभी यहां होने वाले मुजरों के लिए जानी-पहचानी जाती थी. आज भी नाम के लिए ही सही, मगर ये पहचान यहां जिंदा है. यहां डांस वाले दो कमरे हैं जहां मुजरा होता है. हॉलनुमा कमरे में मसनद के साथ बैठकी लगती है. सारिका बताती है कि यहां के मुजरे कभी बहुत फेमस हुआ करते थे. इलाके में शाम को कारों की कतारें लगा करती थीं. नृत्य में पारंगत महिलाओं की ख्याति दूर दूर तक थी. ऐसा नहीं है कि अब कला एकदम विलुप्त हो गई है. अब भी यहां ऐसी कलाकार महिलाएं हैं जो दुबई तक परफॉर्में करने जा चुकी हैं. उनकी कांच या तलवार की धार पर मुजरा करने की कला फेमस है.